देश के हित में है नागरिकता संशोधन कानून

विभिन्न राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी वोट बैंक की बढ़ोतरी के लिए केंद्रशासन पर कीचड़ उछालते हुए सांप्रदायिकता का आरोप लगा रही है य मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक, धारा 370 का हटना व यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय राम जन्मभूमि को भी इसमें सम्मिलित करते हुए एकतरफा मुद्दों से विपक्ष को विरोध करने का सुअवसर प्राप्त हो गयाबाजार में आर्थिक मंदी, नोट विमुद्रीकरण एवं जीएसटी की समस्याओं से जूझ रहे मध्यमवर्ग जो पहले से ही सरकार से त्रस्त हैं। इन सब समस्याओं के मध्य गृहमंत्री श्री अमितजी शाह ने देश की सुरक्षा की पूर्व तैयारी को नजरअंदाज करते हुए इस बहु-प्रतिक्षित, आवश्यक एवं जरूरी नागरिकता संशोधन कानून को लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों में पूर्ण बहुमत से पास करा लिया। नागरिकता कानून के विरोध में धरना प्रदर्शन के साथ हिंसक घटनाओं के बढ़ते जाने के बाद भी नेताओं, कलाकारों और मीडिया के एक हिस्से के लोग नागरिकता कानून के हिंसक विरोध की या तो अनदेखी कर रहें या फिर उसे जायज ठहरा रहें हैं। लेकिन विरोध के इस अधिकार के नाम पर हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता और उस हिंसा को तो बिलकुल भी नहीं, जिसमें सरकारी गैरसरकारी संपत्ति जलाई जा रही हो और पुलिस को निशाना बनाया जा रहा हो।


एक तरफ देश का शत्रु बहुत समय से देश में आग भड़काने का प्रयास कर रहा हैं। 'बिल्ली के भाग से छींका टूटा' उसने मौका देखकर अलगाववादी घुसपैठिए, सोशल मीडिया एवं देश के भाड़े से लायें अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों, में देश की शांति भंग कर अराजकता को फैलाना प्रारंभ किया। देश की विपक्षी पार्टियां भी पड़ोसी के हथकंडो को नहीं समझते हुए जलती आग में कूद गई। केवल एक ही ध्येय कि केंद्र शासन को नुकसान पहुंचाना हैं। विपक्षी यह यह क्यों नहीं सोच रही है कि उनके इस हथकंडे से देश में गृहयुद्ध का बीज बोया जा रहा है?


बंधुओं सर्वप्रथम हम यह देखे कि भारतीय नागरिकता कैसे प्राप्त होगी। आप भारत में जन्म लेवें, वंश के हिसाब अर्थात आपके जन्मदाता माता-पिता भारत के नागरिक हो, पंजीकरण रह रहे हो, भारत की भूमि में जहाँ रहें हैं। उसका भारत में किसी कारण विलय हो गया हो।


अवैध-प्रवासी वे होते हैं जो बगैर सरकारी इजाजत के अन्य देश से भारत में आ गए एवं रह रहे हैं। जिनमें अधिकतर हिंदू, सिख, जैन, पारसी एवं क्रिश्चियन हैं परंतु राजनीतिक, गरीबी एवं काम धंधे के लिए मुस्लिम आबादी के कई लोग भी अवैध प्रवासी हैं।


इस संशोधन के तहत ऐसे अवैध प्रवासी जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत में रहने लग गए हैं एवं पड़ोसी 3 मुस्लिम मुल्कों के अल्पसंख्यक है, एवं पाँचों जातियों (हिंदू सिख, जैन,पारसी,इसाई) के धर्मावलम्बी हैं। उन अवैध-प्रवासी को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इस सबके साथ-साथ नॉर्थ-ईस्ट के प्रदेशों में जहां NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर्ड) कानून लागू है वहां CAA (नागरिकता संशोधन कानून) लागू नहीं किया गया हैं। अतः उन्हें तो CAA का विरोध करने का कोई औचित्य ही नहीं है।


सर्वप्रथम तो भारत के सभी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, जैन जो 1947 के पूर्व से ही भारत में रह रहे हैं उनके परिवारों को तो किसी भी प्रकार का भय होना ही नहीं चाहिए। क्योंकि CAA कानून में किसी की भी नागरिकता समाप्त करने का कोई प्रावधान नहीं है।


बंधुओं यदि हम 1947 के पश्चात के इतिहास का अवलोकन करते हैं तो:


(1) 1950 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री जवाहरलालजी नेहरू एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्रीमान लियाकत अली के बीच समझोते के तहत प्रत्येक धर्म के नागरिकों को 3 देशों में से कहीं भी स्वेच्छा से रहते हए नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार हैं व परंतु मुस्लिम देशों के शासकों ने वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दुओं को जो पाकिस्तान एवं पूर्वी पाकिस्तान (1947) में करीब 23: थे वे केवल 1.7: एवं बांग्लादेश में केवल 3: के आसपास रह गए हैं । इन प्रताड़ित पाँचों धर्म के अल्पसंख्यकों को भारत सरकार ने समय-समय पर नागरिकता भी प्रदान की है


(2) सर्वप्रथम पुर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलालजी नेहरु ने केवल हिन्दू व सिखों को तत्पश्चात पुर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिराजी गांधी ने युगांडा से निष्कासित हिंदुओं एवं सिखों को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान की हैं।


(3) प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में भी श्रीलंका से आए तमिलों को भारतीय नागरिकता दी गई।


(4) 2003 में माननीय पूर्व प्रधानमंत्री व् उस समय राज्यसभा के विपक्ष के नेता (आसाम के प्रतिनिधि) श्रीमान मनमोहनसिंह ने भी अटल सरकार को प्रस्ताव दिया था कि अवैध गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने में देरी नहीं की जावें।


अतः यह स्पष्ट है कि जब-जब विदेशों में रह रहे अल्पसंख्यकों, गैर मुस्लिमों को तकलीफ आई है तब-तब उस समय की सरकारों ने उसके लिए हल निकाला है यह पहली बार नहीं हुआ है जिसके लिए हव्वा खड़ा किया गया। बंधुओं, समानता का अधिकार तो केवल भारत के नागरिकों के लिए है. ना कि विदेशी अलगाववादियों के लिए बंधुओं, आज जिस प्रकार की अग्निपरीक्षा नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में देश को चुकाना पड़ रही है यह अग्नि परीक्षा देश के लिए अत्यंत कष्टप्रद है। एक तरफ जहाँ देश के आर्थिक परिस्थितियाँ गड़बड़ा रही है। बैंकों के एनपीआर बढ़ते जा रहे हैं भयंकर मंदी का वातावरण एवं बेरोजगारी के साथ-साथ इस वर्ष की खरीफ की फसलें आपदाओं के कारण नष्ट हो गई है।


लोकतंत्र में विचार के लिये प्रावधान हैं, इसी के लिये नगरनिगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा एवम अंतिम निराकरण के लिये सर्वोच्च न्यायालय मौजूद हैं। वास्तव में इससे नुकसान तो हम देशवासियों का ही हैं। देश 4 कदम आगे जाकर 2 कदम पीछे आ गया हैं।


गांधीजी का केवल अंग्रेजों की सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन आजादी प्राप्त करने के लिए था। अब राजनेताओं ने उसे प्रत्येक सरकार के खिलाफ विरोध के लिए अनुकरणीय बना लिया। कल ही मोदीजी ने भी कहा है कि:- अगर आपको मोदी से नफरत है तो मोदी के पुतले जलाओं, उसे जूते मारों, लेकिन गरीब क ऑटो मत जलाओं। संपत्ति मत जलाओं। कुछ लोग पुलिसवालों पर पत्थर बरसा रहें हैं पुलिसवाले किसी के दुश्मन नहीं होते। आजादी के बाद 33 हजार पुलिसवाले भाइयों ने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए शहादत दी हैं।


हैरानी है कि जब सरकार इस सबके बारे में जान रहीं थी कि लोगों को भ्रमित और भयभीत किया जा रहा हैं, तब फिर सरकार की ओर से आम लोगों तक पहुंचने का काम समय रहते क्यों नहीं किया गया ? वर्तमान नागरिकता कानून के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने CAA पर विचार हेतू स्वीकार करते हुए यही कहा है कि जब तोड़फोड़, आगजनी नहीं रुकती है वे प्रशासन को रोक नहीं सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस विचार में गलत क्या हैं? बंधुओं हमें अपनी संतानों को राष्ट्रीय संस्कार एवं देशके प्रति एक सैनिक के समान देश की रक्षा के लिये त्याग, बलिदान का कर्तव्य सिखलाना आवश्यक हो रहा है।


 



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